आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ और चमकदार त्वचा कैसे प्राप्त करें?

आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ और चमकदार त्वचा कैसे प्राप्त करें?

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    हाइपर पिगमेंटेशन यह एक आम समस्या है, जिसमें त्वचा पर गहरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं। त्वचा में मेलेनिन का स्तर बढ़ने की वज़ह से भूरे, काले, लाल, गुलाबी धब्बे बन जाते हैं। यह धब्बों की वज़ह से दर्द या खुजली नही होती, किंतु इनके कारण आत्मविश्वास में कमी आ जाती हैं। हाइपर पिगमेंटेशन त्वचा में मेलेनिन का स्तर बढ़ने की वज़ह से होता हैं। मेलेनिन यह एक नैसर्गिक रंगद्रव्य हैं, जिससे अपनी त्वचा, आँख और बाल को रंग प्राप्त होता हैं। मेलेनिन बढ़ने के कई कारण होते है, जिन में कुछ प्रमुख कारण है- धूप में अधिक समय बिताना, हॉर्मोन्स का प्रभाव, बढ़ती उम्र, त्वचा पे व्रण या शोथ।

    त्वचा में स्थित रोमकूप तेल अथवा मृत त्वचा की कोषिकाओंद्वारा अवरुद्ध होने से मुँहांसें, व्हाइट हेड (सफ़ेद गांठ), ब्लैक हेड (कील)   जैसी समस्याएँ निर्माण होती हैं । मुँहांसें ज्यादातर किशोरावस्था में पाये जाते है, किन्तु किसी भी उम्र में हो सकते हैं। इसके लक्षणों के अंतर्गत कील, पूययुक्त मुँहासे अथवा बड़े, लाल और वेदनायुक्त फोड़े होते हैं।

    बढ़ती उम्र के साथ त्वचा का उपरी स्तर (एपिडर्मिस) पतला होता है, हालांकि अन्य स्तरों में कोई बदलाव नही होता। रंगद्रव्य से युक्त कोषिकाओं  (मेलनोसाइट) की संख्या घट जाती है। बची हुवी मेलनोसाइट आकार में बढ़ जाती हैं। बढ़ती उम्र में त्वचा पतली और फ़ीकी दिखाई देती हैं।

    अल्ट्रावाइलेट किरणों का अत्यधिक सेवन – अल्ट्रावाइलेट रेडिएशन बूढ़ापे की प्रक्रिया को जल्द गति से बढ़ाता है। यह वक्त से पहले झुर्रियां बनने का एक प्राथमिक कारण हैं। अल्ट्रावाइलेट किरणों के सेवन से त्वचा की संयोजक ऊतिका टूट जाती हैं – कोलाजेन और इलास्टिन फाइबर – जो की त्वचा की अंदरूनी स्तर में मौजूद होते हैं। बढ़ती उम्र के साथ झुर्रियां और ढ़ीली त्वचा की समस्या निर्माण होती हैं। सबमें पहले त्वचा पर महीन रेखाएँ और झुर्रियां दिखाई देने लगती हैं। ये महीन रेखाएँ तथा झुर्रियां आँखों की कोनों में उल्लेखनीय रूप से दिखाई देने लगती हैं, जिन्हे ‘लाफ़्टर लाइन्स’ अथवा ‘काउज़ फ़ीट’ भी कहा जाता हैं ।

    त्वचा में निर्जलीकरण के कारण तीव्र और दीर्घकाल खिंचाव के वजह से आभा और सुंदरता की कमी दिखाई देने लगती हैं। धोने के बाद विशेष रूप से त्वचा में खुजली और स्केलिंग निर्माण होती हैं।

    पिंच टेस्ट –

    १ अपने गाल, पेट, छाती, या अपने हाथ के पिछले हिस्से पर त्वचा की एक छोटी मात्रा को पिंच (दो उंगलियों के चिमटी में) करें और कुछ सेकंद के लिए पकड़ें।

    २ अगर आपकी त्वचा तुरंत पूर्ववत हो जाती हैं, तो आपकी त्वचा में शुष्कता नही है।

    ३ यदि अगर उसे वापस पूर्ववत होने में समय लगता हैं, तो आपकी त्वचा शुष्क हो रहीं हैं।

    स्ट्रेच मार्क्स – यह त्वचा पर पड़ने वाली त्वचा से भिन्न रंग की लकीरें या धारियों को कहा जाता हैं। यह निशान पेट, स्तनों, कूल्हों, नितंबों, जांघों या शरीर के अन्य स्थानों पर दिखाई देते हैं। निशान शुरू में झुर्रीदार, उभरी हुई धारियों के रूप में दिखाई देते हैं, जो त्वचा के रंग के अनुसार लाल, बैंगनी, गुलाबी, लाल-भूरे या गहरे भूरे रंग के हो सकते हैं। धारियाँ धीरे धीरे फीकी और चपटी हो जाती हैं और अंततः एक चमकदार रंग में बदल जाती हैं।

    स्ट्रेच मार्क्स होने के सामान्य कारण –

    • गर्भावस्था – गर्भवती होने वाली लगभग 50-90% महिलाओं को प्रसव के दौरान या बाद में स्ट्रेच मार्क्स का अनुभव होता है।
    • यौवन: युवावस्था के दौरान युवाओं में तेजी से बदलाव आने लगते हैं। इससे स्ट्रेच मार्क्स के निशान हो सकते हैं।
    • तेजी से वजन या मोटापा बढ़ना: कम समय में बहुत तेज़ी से वजन या मोटापा बढ़ने से स्ट्रेच मार्क्स के निशान हो सकते हैं।
    • व्याधियाँ : कुछ बीमारियों के कारण स्ट्रेच मार्क्स के निशान हो सकते हैं, जैसे कि मार्फन सिंड्रोम और कुशिंग सिंड्रोम। मार्फन सिंड्रोम के वजह से त्वचा में लवचिकता कम हो सकती है, और कुशिंग सिंड्रोम में शरीर में अधिक हार्मोन का उत्पादन होने से तेजी से वजन बढ़ता है और त्वचा बहोत कोमल हो जाती है।
    • कॉर्टिकोस्टेरॉइड का उपयोग: कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम और लोशन का दीर्घ काल तक प्रयोग करने पर त्वचा में कोलेजन के स्तर कम हो सकता है। कोलेजन त्वचा को मजबूत बनाता हैं और बल देता है, इसकी कमी के वज़ह से स्ट्रेच मार्क्स का खतरा बढ़ सकता है।

    त्वचा में तीन प्रमुख स्तर होते हैं। स्ट्रेच मार्क्स के निशान डर्मिस, या मध्यम स्तर में बनते हैं, जब संयोगी उतिकाएँ   अपनी लवचिकता की सीमा का उल्लंघन करके फैल जाती हैं। यह आमतौर पर त्वचा के तेजी से प्रसरण या संकुचन के कारण होता है।

    ऑइल ला सन्ते तेजी से त्वचा के स्वास्थ्य को सुधारता है और त्वचा की पुनर्निर्माण को बढ़ावा देता है। समय से पहले आनेवाले परिवर्तनों को (बुढ़ापे की लक्षणों को) और त्वचा को पतला होने से भी रोकता है। यह एपिडर्मल कोलेजन के निर्माण और वृद्धी को बढ़ावा देता है और त्वचा की लवचिकता में सुधार करता है। इसमें प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट गुण हैं। यह न केवल सूरज के किरणों से क्षतिग्रस्त त्वचा को पुनर्जीवित करने में मदद करता है, बल्कि त्वचा को नम बनाये रखता है और शुष्कता से बचाव करने के लिये त्वचा के उपर एक सुरक्षात्मक कवच/स्तर बनाता है। यह शरीर के साथ-साथ चेहरे के लिए भी उपयुक्त है। ऑइल ला सन्ते एक कोमल /हल्का और हाइपोएलर्जेनिक तेल है और इसे संवेदनशील त्वचा के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

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