प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार कैसे करें?
संक्रमण को दूर रखने के लिए एक अच्छी संरक्षक प्रणाली जरुरी है। विशेष रूप से कोरोना वायरस महामारी के साम्प्रत समय में, हमें स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त उपाय योजना करनी चाहिए। आयुर्वेद, एक रोग निवारक और उपचारात्मक वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली है। जो रोग प्रतिकार शक्ति को मजबूत करने के लिए कुछ उत्कृष्ट उपायों और वनस्पति औषधियों की जानकारी देता है। आयुर्वेद के अनुसार अच्छे स्वास्थ्य के लिए रोग और इसके लक्षणों के प्रति प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने की आवश्यकता है। रोगप्रतिकार शक्ति की कमी और खराब स्वास्थ्य होने पर बार बार बीमारियां, एलर्जी, थकान, उत्साह का आभाव, कमजोरी, श्वसन संबंधी समस्याएं, तनाव और अवसाद, पाचन संबंधी समस्याएं और लम्बे समय तक अनिद्रा जैसे लक्षण होते हैं।
रोगप्रतिकार शक्ति के कमी के कई कारण हैं जिनमें आनुवंशिक कारण, मानसिक अस्वास्थ्य, प्रदूषण, हीन आहार, विपरीत जीवन शैली और चयापचय संबंधी समस्याएं शामिल हैं। इन सभी समस्याओं को विभिन्न उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है जो पालन करने में आसान है। इम्युनिटी शरीर की बीमारियों को निवारण करने और दूर रखने की क्षमता है। आयुर्वेद के अनुसार, ओजस को एक उत्तम आरोग्य का राज़ माना जाता है और इसलिए यह प्रतिरक्षा से संबंधित है। प्रतिरक्षा, व्याधिक्षमत्व, हम सभी के भीतर एक शक्ति है जो रोगों के कारणों और लक्षणों का प्रतिरोध करती है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में, इसे शाब्दिक रूप से ‘व्याधिक्षमत्व’ या ‘बीमारी से स्वरक्षा’ के रूप में जाना जाता है। व्याधिक्षमत्व दो शब्दों से बना है – व्याधि + क्षमत्व जहाँ व्याधि का अर्थ है ‘रोग’ या ‘बीमारी’ और क्षमत्व का अर्थ है ‘प्रतिरोध करना’।
प्रतिरोध शक्ति ३ तरह की होती हैं –
- सहज व्याधिक्षमत्व– जो हमें जन्म से विरासत में मिलती है और अनुवांशिक होती है।
- व्यधिज व्याधिक्षमत्व- यह तब विकसित होती है जब एक एंटीजेन हमारे शरीर में निर्माण होता है। हमारी प्रतिकार शक्ति हमारी रक्षा के लिए उस विशिष्ट एंटीजेन के खिलाफ विशिष्ट एंटीबॉडी उत्पन्न करती है।
- युक्तिकृत व्याधिक्षमत्व- यह एक स्वस्थ आहार, योग्य जीवन शैली और सामान्य नियमों के पालन से प्राप्त किया जाता है।
ऐसे कारण जो हमारी प्रतिकार शक्ति पर नकारात्मक असर करते हैं:-
- असंतुलित आहार
- अत्यधिक मद्यपान
- अत्यधिक मानसिक तनाव
- मोटापा
- दीर्घकाल अप्राकृतिक औषधी का सेवन
- ज़्यादा सोचना और चिंता करना
- असमय आहारसेवन, अस्वच्छ आहार, शीत- बाँसी खाना, मसालेदार और प्रोसेस्ड खाना
- व्यायाम का आभाव
- आँखों और अन्य इन्द्रियों को अधिक तनाव
- निद्रा का अनियमित काल – रात में देर तक जागना
आयुर्वेद अनुसार रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहाय्यक कारण :
- संतुलित, दोषानुरुप आहार (षड्रसात्मक, विशुद्ध एवं गुणवत्तापूर्ण)
- नियमित योगाभ्यास
- दैनंदिन आहार में विविध मसालों का समावेश करना। बहुतांश मसाले उत्कृष्ट एंटीऑक्सिडेंट होते हैं और केशिकाओं को नुकसान से बचाकर अबाधित रखते हैं।
- नियमित रूप से शरीर शुद्धि के लिए उपवास, वर्ष में एक बार पंचकर्म क्रिया कराना
- नियम से आँवला और अश्वगंधा जैसे रसायन औषधियों का सेवन करना
यदि आप बार बार संक्रमणग्रस्त हो जाते हैं, तो यह आपकी कमज़ोर प्रतिरोधशक्ति का दर्शक है। जब आपका शरीर जीवाणु और वायरस से होनेवाले संक्रमण का सामना करने में असमर्थ होता है तब आप साल में बार बार बीमार होते हैं। आपको वारंवार त्वचा के विकार, श्वसन विकार और फंगल इन्फेक्शन हो सकते हैं। घाव भरने में देरी, चिंता, थकान और कमजोर पाचन तंत्र भी कमजोर प्रतिरोधशक्ति के संकेत हो सकते हैं। संपूर्ण रक्त प्रोफ़ाइल परीक्षण श्वेत कोशिकाओं की संख्या गिनकर आपकी प्रतिरोध शक्ति के सामर्थ्य का परीक्षण करने में मदद कर सकता है, जो रोग के प्रतिकार के लिए जिम्मेदार है।
ऑप्टिलाइफ़ कैप्सूल और सिरप यह सर्वांगीण रूप से प्रतिरोधशक्ति बढ़ाने वाला एक रसायन वनौषधि योग है। यह केशिकाओं की और त्रिदोषज प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता हैं। ऑप्टिलाइफ़ कैप्सूल और सिरप के सभी हर्बल घटक रोगप्रतिरोधशक्ति नियमित एवं सुयोग्य रूप में उत्तेजित (इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग, इम्यूनोस्टिम्युलेटिंग) करते हैं तथा एंटीऑक्सीडेंट गुण दिखाते हैं। विशेष रूप से एचआईवी, क्षय रोग और कोविड-१९ आदि जैसे इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड विकारों में ऑप्टिलाईफ़ एक सहाय्यक चिकित्सा के रूप में उपयोगी है।
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