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संधियाँअस्थियोंकोजोड़तीहैं।यहआपकोमजबूतबनातीहैंऔरघूमनेफिरनेमेंमदद करतीहैं। किसी व्याधि के कारण अथवा चोट लगने की वजह से संधियों को नुकसान पहुँचता हैं, तो दर्द के अलावा आपके दैनंदिन गतिविधियों में बाधा निर्माण होती हैं। बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों का दर्द होना एक आम बात हैं। सन्धिवेदना शरीर के किसी भी अंग में हो सकती हैं, जैसे गुल्फ संधि से लेकर पैरों में अथवा कंधो में और हाथों में भी हो सकती हैं। विविध विपरीत स्थितियों के कारण सन्धिवेदना शुरू होती हैं। सन्धिवात यह एक सामान्य रूप से पाये जानेवाली वातव्याधि है, जिसमे सन्धिवेदना मुख्य लक्षण रूप में दिखाई देती है।
सन्धिवात को “वेअर अण्ड टेअर” गठिया भी कहते है। सन्धिवात में सन्धिवेदना के साथ साथ सन्धियो की गतिविधियों में कार्यात्मक अवरोध भी होता है, जिसके कारण जीवनशैली पर भी विपरीत प्रभाव दिखाई देता है। ऑस्टिओआर्थरिटिस (सन्धिवात) यहआमरूपसेपायाजानेवालाएकवातविकारहै और सम्पूर्ण दुनिया में पाया जानेवाला सन्धिवेदना और विकलांगता का एक प्रमुख कारण हैं। सन्धिवात में सन्धि के अंतर्गत स्थित उपास्थि (कार्टिलेज) और अन्तर्निहितअस्थि का क्षरण होता हैं। अधिक उम्र के लोगों में सन्धिवात का प्रमाण ज़्यादा दिखाई देता हैं। लेकिन जो युवा व्यक्ति अगर अपनी दैनंदिन गतिविधियों में /व्यवसाय के कारण अथवा क्रीड़ापटु होने से सन्धियों का अत्यधिक रूप में उपयोग करता हैं, उनमे भी यह व्याधि दिखाई देता हैं।
वेदना, स्पर्शासहत्व, जकड़न, लचीलेपन का अभाव, शोथ, क्रियासामर्थ्य में हानि /ऱ्हास यह सन्धिवात में पाए जानेवाले सामान्य लक्षण हैं। सन्धिवेदना की चिकित्सा के अंतर्गत दर्द को कम करने के लिए वेदनाशामक औषधियों का सेवन, स्टेरॉइड इंजेक्शन का प्रयोग, सन्धि प्रत्यारोपण इ. का समावेश होता हैं। उसके दुष्परिणाम स्वरूप हृल्लास/ मिचली , उलटी, पेट की शिकायत और कभी कभी किड़नी भी ख़राब हो जाती हैं।
ऑस्टियोआर्थराइटिस को आयुर्वेदानुसार ‘संधिगत वात’ माना जा सकता हैं। आयुर्वेद में सन्धिवात के कारणों में अस्थि धातु और वात दोष के महत्त्व का वर्णन किया गया हैं। आयुर्वेदानुसार रुक्ष-शीत अन्न का सेवन, अनियमित काल में निद्रा सेवन, वेगधारण, अतिशीत और रुक्ष वातावरण में रहना , वार्धक्य के कारण कार्टिलेज का क्षय और जोड़ों को अधिक तनाव देनेवाला कार्य करना यह सब सन्धिवात के प्रमुख/ सामान्य कारण बताये गए हैं।
यथाशक्ति व्यायाम यह सभी तरह के जोड़ों के दर्द निवारण की एक उत्कृष्ट चिकित्सा हैं। व्यायाम से दर्द कम होने में मदत होती हैं और वज़न भी नियंत्रित रहता हैं। व्यायाम के अंतर्गत सप्ताह में ३-४ दिन ३०-४० मिनिट तक तेज चलने का समावेश हो सकता हैं। नीचे घुटने मोड़ कर बैठना सही नहीं हैं। अधिक वज़न उठाना मना है। जिन गतिविधियों के कारण जोड़ों पर अधिक तनाव पड़ता हैं जैसे बाग़बानी, लम्बे समय तक खड़े होना, घुटना टेककर खड़े होना और स्क्वेटिंग यह मना हैं।
सन्धिवात की आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंतर्गत संधि के क्षय को रोकना और क्षतिग्रस्त कार्टिलेज को पुनरनिर्माण करने में मदत करना इनका समावेश हैं। जोड़ो को मजबूत और लचीले बनाने हेतु वातशामक वनस्पति औषधियों द्वारा चिकित्सा बतायी गयी हैं। वर्तमान में वेदनानिवारक, वातशामक, शोथनाशक संशोधन द्वारा साबित की गयी वनस्पति औषधियाँ सन्धिवात में लाभदायक दिखाई देती हैं।
ओस्टियो टैबलेट यह सभी प्रकार के सन्धिरोग में लाभदायक आयुर्वेदिक औषधि योग हैं। ओस्टियो टैबलेट में निर्गुण्डी, रास्ना, शुण्ठी, पुनर्नवा और गुडूची आदि प्रसिद्ध अनुभूत दर्दनिवारक, शोथनाशक और रोगप्रतिकारशक्तिवर्धक वनस्पति औषधियाँ समाविष्ट हैं। यह नैसर्गिक कैल्शियम से युक्त होने से अस्थियाँ और सन्धियों को मजबूत बनाये रखता हैं।ओस्टियो टैबलेट सन्धिवात में होनेवाली सूजन को कम करने के लिए, दर्द दूर करने के लिए, सन्धियों की गतिविधियाँ और क्रियाशीलता बढ़ाने में लाभदायक औषधि है।
ओस्टियो जेल एक प्रभावी वेदनाशामक, ऐंठन को दूर करनेवाला और जोड़ों की क्रियाशीलता को बनाये रखता हैं। यह स्थानिक स्वेदन चिकित्सा के रूप में जीर्ण वेदना को और मांसपेशियों के ऐंठन को कम करता हैं। ओस्टियो जेल से हल्की मालिश करने से मांसपेशियों का तनाव शिथिल (हल्का) हो जाता है। ओस्टियो जेल यह स्थानीय वेदनाशामक और शोथनाशक वनस्पति औषधियों से युक्त हैं। यह रक्तवाहिनियों का विस्फार करने में मदद करता है जिससे स्थानीय रक्त की आपूर्ति, ऑक्सीजन और पोषक तत्वों में वृद्धि सुनिश्चित होती है, जिससे ऊतकों को अधिक तेज़ी से ठीक होने में मदद मिलती है।
इस प्रकार, सन्धिवात जैसी अवस्था में जोड़ों के दर्द के निवारण के लिए ओस्टियो टैबलेट और ओस्टियो जेल एक सम्पूर्ण चिकित्सा हैं।