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यकृत आपके शरीर की रक्तगत शर्करा को नियंत्रित रखने में मदद करता हैं। आपका यकृत आपके रक्त में जरुरत की समय शर्करा (ग्लूकोज़) उपलब्ध कराता हैं। ग्लूकोज़ ज्यादा मात्रा में होनेपर रक्त से निकालता भी हैं।
यह रक्तगत शर्करा को नियमित रखता हैं, विटामिन्स का निर्माण करता हैं, रक्त की उचित तरलता बनाये रखता हैं, मांसपेशियों को सक्षम बनाये रखता हैं। यह रक्त के अंदर के विषद्रव्यों को निकालता हैं और दवाइयाँ एवं अल्कोहोल को साफ़ करता हैं। नियमित रूप से व्यायाम करने पर यकृत द्वारा माँसपेशियों का विकसन होता हैं। स्वस्थ हृदय के लिए यह बहोत जरुरी हैं।
यकृत लगभग ५०० महत्वपूर्ण कार्य करता है।
फैटी लिवर की व्याधि –
यकृत में चर्बी/फैट जमा हो जाती हैं।
फैटी लीवर की बीमारी अत्यधिक शराब के सेवन से तथा मोटापा और टाइप २ डायबेटीस के कारण भी हो सकता है। ज़्यादातर रुग्णों में इस व्याधि के कोई भी लक्षण दिखाई नही देतें। कभी कभी थकान, वज़न में गिरावट और पेट में दर्द हो सकता है। फैटी लिवर के इलाज के लिए सबसे पहले उचित पथ्याहार और नियमबद्ध व्यायाम द्वारा मोटापे को कम करना चाहिए। प्रायः यह एक सौम्य व्याधि है, लेकिन यकृत की कार्यों में बाधाएँ जरूर पैदा करता है। क्वचित कुछ लोगों में लिवर फेल्यूर (सिरोसिस) में परिवर्तित हो जाता है।
फैटी लीवर दो प्रकार के होते हैं- एल्कोहलिक और नॉन एल्कोहलिक
फैटी लीवर के इलाज के दौरान पथ्याहार
ताजे फल एवं सब्जियाँ
अधिक फाइबर युक्त आहार का सेवन करें, जैसे फलियाँ और साबुत अनाज।
कुछ खानपान की चीजों को जैसे के अधिक नमक, ट्रांसफैट, रिफाइन्ड कार्बोहाइड्रेट्स तथा सफेद चीनी वर्ज्य करें।
एल्कोहल या शराब का सेवन बिल्कुल न करें।
यकृतशोथ (हेपाटाइटिस)
इस बीमारी में लीवर में सूजन आ जाती है। विषाणुजन्य यकृतशोथ (व्हायरल हेपाटाइटिस) में 5 प्रकार के के विषाणुओं से हो सकते हैं, जैसे- ए,बी,सी,डी और ई।
इसके कारण निम्नरूप से वर्गीकृत किये जा सकते हैं। संक्रमित, चयापचय सम्बंधित, ऑटोइम्यून, इस्कीमिक, अनुवांशिक और अन्य। संक्रमण के अंतर्गत विषाणु, जीवाणु और परजीवी घटक आते हैं। चयापचय सम्बंधित के अंतर्गत निर्धारित दवाइयाँ, विषद्रव्य (अधिकतर अल्कोहोल) और नॉन अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिसीज यह घटक आते हैं। ऑटोइम्यून और अनुवांशिक कारणों के अंतर्गत अनुवांशिक प्रवृत्तियाँ और उनका विशिष्ट जनसंख्या पर प्रभाव यह घटक आते हैं। ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस यह एक दीर्घकालीन व्याधि है, जिसका कारण यकृत के पेशियों पर होनेवाली असामान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है।
अवरोधजन्य कामला यह एक विशिष्ट प्रकार की कामला है। इसमें पित्तनलिका (bile duct or pancreatic duct) में अवरोध उत्पन्न होने से रक्तगत पित्त का स्त्रवण आंत्रों में नहीं हो पाता हैं, और लक्षण निर्माण होते हैं।
लक्षण: पीलिया -त्वचा और आँखो का पीला पड जाना। मूत्र का रंग गहरा होना और मल का रंग फ़ीका होना। अन्नद्वेष तथा जी मचलना भी प्रायः होता है।
हिपालिना सिरप यह यकृत विकारों में उपयुक्त शास्त्रोक्त और समय निहाय वनौषधियों से परिपूर्ण औषधि योग है। हिपालिना सिरप एंटी वायरल, एंटी ऑक्सीडेण्ट – रसायन और दाहशामक गुणधर्मयुक्त है। यह व्यापक योग हानिकारक विषद्रव्यों से यकृत की कोशिकाओं की रक्षा करता हैं। स्वादिष्ट गुलाब का स्वाद और उपयोग में सरल होने की वज़ह से बच्चों में विशेष उपयुक्त है। यह अत्यंत प्रभावी होने के कारण जनसमान्यों में प्रिय दवाई है।